तुम क्या जानो
तुम क्या जानो
जिस रात स्वप्न में तुम्हारा मिलना न हुआ,
वो रात कैसे कटी तुम क्या जानो;
जिस बात में तुम्हारा जिक्र न हुआ,
वो भी कोई बात हुई ये तुम मानो,
या न मानो I
तुम हो तो पतझर में भी बहार है छाई,
तुम हो तो जीवन में कैसी,
सुरमई शाम है लहराई;
तुम्हारा मुझसे मिलन भी,
किसी स्वप्न की मानिंद मेरे मन में,
एक अजब सा डर तुम से बिछुड़ने का
जगा जाता है, और उस रात फिर मैं....
कैसे पपीहे की तरह उस स्वाति बूंद के
इंतज़ार में टकटकी लगाए,
तुम्हारे पुनर्मिलन की आस में,
फिर सोने की कोशिश में करवटें बदलते
जागा करता हूँ तुम क्या जानो I
ओम प्रकाश
Submitted By: Om on 21 -Feb-2012 | View: 3606
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