रुके क्यों..?
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झुक -झुक कर बीत गयी जिंदगी,
सर ऊँचा कर अब किसी के आगे झुके क्यों..?
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ये राह अपनी, ये मंजिल अपनी..,
तो चलते पैर हमारे थके क्यों..?
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दो रोटियाँ लम्हों की अब तुम भी खा लो,
वक़्त के तुम इतने भूखे क्यों ...?
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आदत तो थी हमें फूलों पर चलने की,
दो चार कांटे भी आये तो अब रुके क्यों..?
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वैभव..
Submitted By: Vaibhav on 28 -Oct-2012 | View: 4789
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