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केदारनाथ त्रासदी

क्यो हुआ बेचैन मन फिर तेरी ओर देखकर,
अश्रु धारा बह गयी फिर से वो दिन यादकर.
फिर से संभलने को कुछ भी ना बचा है,
क्यो किया हे ईश तूने जवाब देना सोचकर.

क्यो रोता है आसमाँ फिर बारिश के इस रूप में,
क्यो घूमड़ते बादल फिर धरती के आगोश में.
दैव हमने क्या किया जो ऐसा तांडव कर दिया,
फिर सुलाएगा हमेशा के लिए गहरी नींद में?

दूध पीते बच्चों ने क्या बिगाड़ा था तेरा,
माँ की गोद में सोए थे उनको बहा तू ले गया.
माँग का सिंदूर पोंच्छा तेरे बहते गुस्से ने,
क्यो उजारी दुनिया उनकी क्यो भरोशा तोड़ दिया?

तेरे दर पे आए थे जो सिर झुकाने के लिए,
लील डाला यो उन्हे भँवर के आवेश में.
लहरों का आवेग ऐसा कुछ ना संभला वेग में,
क्या तेरा आशीष ऐसा नदी के इस भेष में?

बेशक हैवानियत फैली थी तेरे दर के आस-पास,
चंद तिनको के लिए पूरा धरा हिला गया.
आस लगाए बैठे थे अपनो के लौट आने की,
क्यो बसाई दुनिया उनकी जो बहते आँसू दे गया.

बुढ़ापा ना देखा बसाया घर ना देखा,
आँगन में बच्चों की किल्कारी ना देखी.
ना देखी तुमने जो गौ माता की रुदाली,
क्यो बहाई ये बेजुबान गाय बच्च्छिया ना देखी.

उजड़ते पहाड़ो का दर्द कैसे पता चलेगा,
बढ़ते पेड़ो के आँसू बयाँ कर रहे है.
चीखे पुकारें यो तुम्हे सुनाई नही दी,
लाशों का ये ढेर तुम्हे सुना रही है.

चार धाम यात्रा चले थे सपने सजाकर,
बद्री विशाल था चले बाबा केदार के घर.
कदम वही रुक गये जहा पे खड़े हुए थे,
क्या पाया तूने ऐसा मानव से रूठकर.

Submitted By: Shiv Charan on 18 -Jul-2013 | View: 2562

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