Khushiyaan
  
		खुशियाँ  
 
वो कहते हैं की हमने,  
खुशियाँ हैं छुपाई सबसे l  
और यहाँ हमने लुटा दी हैं, 
जहाँ में खुशियाँ अपनी l 
अब जहाँ में कहीं भी, 
खुशियाँ ढूंढता हूँ मै;  
वहीँ पाता हूँ ख़ुशी की खिलती कलियाँ l  
 
फूल के गुंचे में मिला एक भंवरा, 
वो भी फूलों में छुप गया मुझे देखके;  
मैंने पूछा कि यूं छुपे क्यूँ हो?. 
फूल की पंखुड़ी से निकलकर  
मंडराते हुए लगा कहने कुछ इस तरह  
में परेशां हूँ कुछ इस कदर,  
छीन लें न कोई कहीं मेरी खुशियाँ; 
जो समेटी हैं मैंने फूलो का मधुरस पीकर l 
फूल कंसने लगा यूं भावान्रे की, 
दलीलें सुनकर, 
सोचने मै लगा! ये भी...  
छीन लाया खुशियाँ किसी से l  
 
बाँटने पर किसी से, कम कहाँ होती हैं खुशियाँ? 
ये तो वो खुशबू है जो बिखेरे चमन में, 
किन्तु कम नहीं होती कभी इसकी महक, 
हर चमन हर बाग में बिखेरो यू ये खुशियाँ; 
खुश रहो तुम आप भी और जहाँ में भी बिखरो ये खुशियाँ l 
ओम प्रकाश				
  
		Submitted By: Om on 25 -Feb-2012 | View: 6145
				
						 
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