Air Pollution
व्यथित हृदय से फिर लिख बैठा,
विकसित मानव की गाथा |
विकास की ऐसी दौड़ लगी है,
कुछ भी नही समझ आता |
धूल उड़ाती बड़ी गाड़ियाँ,
जीवन पथ पर चलती है |
कारखानो के धुवें से,
मानव उम्र सदा ही ढलती है |
रोग हज़ारों पाले बैठे,
इस सुखमय संसार में हम |
गुब्बार प्रदूषण का है ऐसा,
जीवन जीना हो गया कम |
साँसे नही आती हवा में,
हरे पेड़ जब कटते है |
गैस विषैली घर बनाए,
साँसों में फिर घुलती है |
वृक्षारोपण से अब अपना,
पर्यावरण बचना है |
प्रदूषण का भय जो ऐसा,
जड़ से हमे मिटाना है |
आओ आज शपथ ले ऐसी,
हरियाली फिर लाएँगे |
वसुंधरा पर स्वास्थ्य शक्ति का,
फिर आधार बनाएँगे |
Submitted By: Shiv Charan on 18 -Oct-2017 | View: 2363
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