पाठ जिंदगी का पढ़ ले
देख नज़ारे दुनिया के कितने रंगों से सजी हुई |
पाठ जिंदगी का पढ़ ले हम अब थोड़ी सी बची हुई ||
बचपन मे माँ-बाबा के संग, बड़े से घर में रहते थे |
भाई-बहनों के संग हम भी, आँगन में खेला करते थे ||
मेहमानो की आवाजाही, त्योहारों की खुशी बड़ी |
पाठ जिंदगी का पढ़ ले हम अब थोड़ी सी बची हुई ||
विकास नाम की गाड़ी आई, घर में मेरे समा न पाई |
गाँव से हमको दूर शहर में, अपने संग बहा ले आई ||
घर परिवार बदला लगता है, रिश्तों में दरारे पड़ी हुई |
पाठ जिंदगी का पढ़ ले हम अब थोड़ी सी बची हुई ||
माँ-बाबा के संग हमारी, हर ज़िद पूरी होती थी |
लड़ते थे भाई-बहनो संग, खुशी अलग ही मिलती थी ||
आज बुजुर्गो की आशाएँ, क्यों अपनो से खफा हुई|
पाठ जिंदगी का पढ़ ले हम अब थोड़ी सी बची हुई ||
संत-समाज, सत्कार बड़ों का, संस्कार बड़ों के भूल गये |
प्यार में पैंसे और पत्नी के, माँ-बाप का प्यार भी भूल गये ||
सारा सुख संसार का वैभव, तीनो लोक समाए वहीं |
पाठ जिंदगी का पढ़ ले हम अब थोड़ी सी बची हुई ||
पहुँचा है आदमी चाँद तक, जाना चाहता है मंगल तक |
भूल गये हम जाना अब तो, अपनों की ही चौखट तक ||
पता हमारा एक है लेकिन, एक-दूजे का पता नहीं |
पाठ जिंदगी का पढ़ ले हम अब थोड़ी सी बची हुई ||
विज्ञान की आँधी ज्ञान की आँधी, हम भी औंधे मुँह गिरे |
ज्ञान के भरते सागर में हम, आत्मज्ञान से दूर परे ||
घर-परिवार, गुरु-ज्ञान को छोड़े, पैसों की लत लगी रही |
पाठ जिंदगी का पढ़ ले हम अब थोड़ी सी बची हुई ||
Submitted By: Shiv Charan on 21 -Sep-2015 | View: 2773
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