रूप जिन्दगी का कुछ और निखर जाता
  
		रूप जिन्दगी का कुछ और निखर जाता 
तेरी दुआओं से मुकद्दर भी संवर जाता 
फकत तन्हाइयों ने ही डुबाया इसे वर्ना 
ये बेड़ा तो तूफ़ान भी पार कर जाता 
 
पुष्यमित्र उपाध्याय				
  
		Submitted By: Vikram on 16 -Apr-2013 | View: 1580
				
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